शून्य काल का अर्थ है वह समय जब कोई गतिविधि, गति, परिवर्तन या क्रिया नहीं होती — अर्थात् पूर्ण स्थिरता और निष्क्रियता की स्थिति। यह शब्द वैज्ञानिक, दार्शनिक और ज्योतिषीय संदर्भों में अलग-अलग तरीकों से उपयोग होता है।
विज्ञान में, शून्य काल (Zero Time) एक ऐसी काल्पनिक अवस्था को दर्शाता है जिसमें समय का प्रवाह रुक जाता है। भौतिकी में जब हम प्रकाश की गति की बात करते हैं, तब यह माना जाता है कि प्रकाश के लिए समय स्थिर हो जाता है — यही विचार शून्य काल का वैज्ञानिक आधार हो सकता है।
ज्योतिष में, शून्य काल को शुभ समय न मानते हुए, ऐसे समय के रूप में देखा जाता है जब कोई नया कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए। यह वह अवधि होती है जब ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति अनुसार कोई भी शुभ या निर्णायक कार्य करने से परहेज किया जाता है। इसे ‘शून्य काल', ‘राहुकाल' या ‘अशुभ मुहूर्त' भी कहा जा सकता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण से, शून्य काल एक ऐसी अवस्था है जहां समय, स्थान, विचार, स्मृति और क्रिया — सबकुछ रुक जाता है। ध्यान या समाधि की उच्चतम अवस्था में योगी या साधक इसी शून्य काल का अनुभव कर सकते हैं। इसे आत्मा का शुद्धतम क्षण भी कहा जा सकता है, जहां व्यक्ति स्वयं से, समय से और संसार से परे होता है।
निष्कर्ष:
शून्य काल एक ऐसी स्थिति है जिसमें समय और क्रिया रुक जाते हैं। यह वैज्ञानिक, ज्योतिषीय और दार्शनिक रूप से अत्यंत गूढ़ और विचारणीय विषय है। यह हमें समय की वास्तविक प्रकृति और उसकी सीमाओं को समझने में मदद करता है।
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