Mahadev ka janm kab or kaise hua

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महादेव का जन्म कब और कैसे हुआ?

महादेव, जिन्हें हम शिव, शंकर, भोलेनाथ और महेश के नाम से भी जानते हैं, त्रिदेवों में से एक हैं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ये संसार के संहारक माने जाते हैं, लेकिन इनके बिना सृष्टि अधूरी है क्योंकि नई शुरुआत के लिए पुराने का अंत जरूरी होता है।

अगर “महादेव का जन्म कब हुआ?” यह पूछा जाए तो उसका उत्तर थोड़ा रहस्यमय है, क्योंकि भगवान शिव को “अनादि” और “अनंत” कहा जाता है। इसका मतलब है कि न उनका कोई आदि (शुरुआत) है और न अंत। वह समय, स्थान और प्रकृति से परे हैं। वे स्वयंभू हैं – यानी खुद से प्रकट हुए हैं। इसलिए उनका कोई निश्चित जन्मदिन या जन्मकाल नहीं बताया गया है।

महादेव का जन्म कैसे हुआ? इस बारे में एक प्राचीन कथा प्रसिद्ध है। एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद हुआ कि कौन बड़ा है। तभी एक अग्नि स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ जो अनंत ऊपर और नीचे तक फैला हुआ था। ब्रह्मा ऊपर की ओर और विष्णु नीचे की ओर उस स्तंभ का अंत खोजने निकले लेकिन कोई भी उसका अंत नहीं पा सका। तभी वह स्तंभ भगवान शिव के रूप में प्रकट हुआ और उन्होंने बताया कि वे ही सर्वोच्च हैं – जिनका न आदि है न अंत।

इस कथा से यह समझा जाता है कि शिव का जन्म नहीं हुआ, बल्कि वे हमेशा से हैं। वे “सनातन” हैं – शाश्वत और चिरंजीवी। तांडव नृत्य के रूप में वे संसार की गति को दर्शाते हैं – निर्माण, पालन और संहार। उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और चेतना का प्रतीक है। वे कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न रहते हैं, और उनका जीवन हमें संतुलन, संयम और भक्ति का संदेश देता है।

इसलिए महादेव का “जन्म” पारंपरिक अर्थों में नहीं हुआ, बल्कि वे सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं। वे ऊर्जा हैं, ब्रह्म हैं, और चेतना के प्रतीक हैं। उनकी महिमा को शब्दों में बांधना कठिन है, लेकिन भक्ति में उनके दर्शन सहज हो सकते हैं।

भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी (वाराणसी) है। इसे अविनाशी नगरी और मोक्षदायिनी नगरी भी कहा जाता है।

काशी क्यों है शिव की प्रिय नगरी?

1. भगवान शिव का वास: पुराणों में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं काशी में वास करते हैं। जब पृथ्वी पर विनाश होता है, तब भी काशी नष्ट नहीं होती क्योंकि शिव अपनी त्रिनेत्री शक्ति से इसकी रक्षा करते हैं।

2. मोक्ष की भूमि: यह माना जाता है कि जो भी व्यक्ति काशी में प्राण त्याग करता है, उसे स्वयं शिव जी तारक मंत्र “राम” कान में कहते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए इसे मोक्ष की नगरी कहा गया है।

3. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: काशी में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर शिव भक्तों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है।

4. पौराणिक मान्यता: कहा जाता है कि काशी को स्वयं भगवान शिव ने त्रिशूल पर धारण किया है। यानी यह नगरी स्थिर नहीं बल्कि शिव की दिव्य शक्ति से टिकी हुई है।

काशी के बारे में कुछ और रोचक बातें:

इसे अनंत काल की नगरी भी कहा जाता है।काशी को “शिव की नगरी”, “आनंद कानन”, और “प्रयागराज से भी प्राचीन” कहा गया है।

यहाँ का हर कण शिवमय माना जाता है। यहाँ के घाट, गलियाँ, मंदिर — सभी में शिव तत्व की अनुभूति होती है।

निष्कर्ष:

काशी सिर्फ एक शहर नहीं है, ये भगवान शिव की आत्मा है। यह उनकी सबसे प्रिय नगरी है, जहाँ हर भक्त को शिव की कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है। अगर कोई सच्चे मन से काशी आता है और भोलेनाथ का स्मरण करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो सकती हैं।

काशी की अमरता की पौराणिक कथा:

 

बहुत समय पहले की बात है। सृष्टि का अंत करीब आ गया था। प्रलय की आंधी चारों ओर मच चुकी थी। सबकुछ नष्ट हो रहा था – पर्वत, नदियाँ, पेड़-पौधे, नगर और जीव। भगवान विष्णु, ब्रह्मा और अन्य देवता चिंतित हो उठे। वे भगवान शिव के पास गए और बोले:

“प्रभो! जब सबकुछ नष्ट हो रहा है, तो आपकी प्रिय नगरी काशी का क्या होगा? क्या वह भी नष्ट हो जाएगी?”

तब भगवान शिव मंद मुस्कराए और बोले:

“काशी मेरी आत्मा है। यह नगरी मैंने अपने त्रिशूल की नोक पर स्थापित की है। प्रलय चाहे जितना भी भयंकर हो, यह नगरी नष्ट नहीं होगी। जब सृष्टि नहीं थी, तब भी काशी थी, और जब सृष्टि नहीं रहेगी, तब भी काशी रहेगी। यह नगरी अविनाशी है।”

शिवजी ने आगे कहा:

“जो भी भक्त काशी में सच्चे मन से भगवान का स्मरण करता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। यहाँ मृत्यु भी वरदान बन जाती है, क्योंकि मैं स्वयं उसके कान में तारक मंत्र (राम) का उच्चारण करता हूँ और उसे मोक्ष प्रदान करता हूँ।”

यह सुनकर देवता आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने देखा कि प्रलय में सब कुछ डूब चुका था, लेकिन काशी वैसे की वैसी थी – शांत, दिव्य और अलौकिक। न कोई विनाश, न कोई हलचल। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे स्वयं शिव वहां ध्यानमग्न हैं।

इस कथा का संदेश:

काशी केवल एक नगर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है।यह शिव की अनंत कृपा का प्रतीक है।

जो भी व्यक्ति यहां भक्ति करता है, उसे शिव का सान्निध्य और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं।

(1) भैरव बाबा की कथा – काशी के रक्षक

कौन हैं भैरव बाबा?

भैरव बाबा को भगवान शिव का उग्र और रक्षक रूप माना जाता है। इन्हें “काशी का कोतवाल” कहा जाता है – यानी पूरी काशी नगरी की रक्षा करने वाले देवता।

कथा:

पुराणों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने अहंकारवश खुद को सर्वश्रेष्ठ कह दिया। यह बात भगवान शिव को ठीक नहीं लगी क्योंकि ब्रह्मा ने सत्य का उल्लंघन किया। तब भगवान शिव ने अपने क्रोध से एक तेजस्वी रूप उत्पन्न किया – भैरव।

भैरव ने ब्रह्मा का एक सिर काट दिया (ब्रह्मा के पाँच सिर थे)। यह कार्य ब्रह्म हत्या के समान था, इसलिए भैरव को प्रायश्चित स्वरूप एक विशेष यात्रा पर भेजा गया। उन्होंने ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए अनेक स्थानों की यात्रा की और अंत में जब वे काशी पहुँचे, तो ब्रह्महत्या (पापरूपी स्त्री) उनके पीछे से हट गई। यहीं उन्होंने स्थायी रूप से निवास करना शुरू किया।

इसलिए कहा जाता है:

> “काशी में बिना भैरव बाबा की आज्ञा के कोई टिक नहीं सकता।”

आज भी लोग काशी आने के बाद पहले काल भैरव के दर्शन करते हैं, फिर विश्वनाथ जी के।

(2) मां अन्नपूर्णा और शिव जी की कथा

कथा का सार:

एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती (अन्नपूर्णा) से कहा:“यह संसार माया है, भोजन भी माया है। आत्मा को भोजन की कोई आवश्यकता नहीं।”

माता पार्वती ने सोचा, “अगर ऐसा है तो मैं देखती हूँ इस बात की सच्चाई।” उन्होंने पूरे संसार से भोजन को अलक्षित (अदृश्य) कर दिया। सभी जगह भूख और त्राहि-त्राहि मच गई, खुद शिव जी भी भूख से व्याकुल हो गए।

शिव जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वे माता पार्वती से क्षमा मांगने गए। पार्वती ने काशी में एक रसोई बनाई और स्वयं “मां अन्नपूर्णा” के रूप में प्रकट होकर लोगों को अन्न वितरण करना शुरू किया।

शिव जी ने स्वयं कटोरा फैलाया:

कहा जाता है कि भगवान शिव ने भिक्षा पात्र लेकर मां अन्नपूर्णा से अन्न मांगा, और उन्होंने शिव को अन्न प्रदान कर संसार को फिर से संतुलित किया।

इस कथा का संदेश:

अन्न ही ब्रह्म है।हमें भोजन का आदर करना चाहिए।और सबसे बड़ी बात — शिव बिना शक्ति (पार्वती) के अपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

भैरव बाबा काशी की रक्षा करते हैं।

मां अन्नपूर्णा अन्न की देवी हैं और शिवजी को भी उन्होंने भिक्षा दी थी।

दोनों कथाएँ यह सिखाती हैं कि भक्ति, ज्ञान और सेवा – तीनों शिव तत्व का हिस्सा हैं।

 “मां अन्नपूर्णा और शिव जी की कथा” पर आधारित एक सुंदर कविता प्रस्तुत है। यह कविता सरल, भक्तिपूर्ण और भावनात्मक शैली में रची गई है ताकि आप इसे आसानी से याद भी कर सकें:

“अन्नपूर्णा की माया”

(एक भक्तिपूर्ण कविता)

काशी नगरी शांत थी, ध्यान में लीन शिवराज,

जग से बोले वाणी में — “भोजन मात्र एक समाज।

माया है ये अन्न-वस्त्र, आत्मा को क्या भूख?

योग में जो रमा रहे, उनका क्या ये सूख?”

पार्वती मुस्काईं तब, कुछ न बोली बात,

परमेश्वर की परीक्षा लेने का लिया विचार।

अन्न अचानक लुप्त हुआ, भंडार हुए खाली,

हर प्राणी भूख से रोया, आंखें हो गईं गीली।

ऋषि-मुनि भी त्रस्त थे, ब्रह्मा विष्णु हारे,

भोजन बिन मानव हुआ, व्याकुल और बेचारे।

शिवजी भी मौन रहे, पर भूख उन्हें सताई,

समझ गए — माया नहीं, यह शक्ति की सच्चाई।

काशी के एक कोने में, मां ने रूप सजाया,

“अन्नपूर्णा” बन प्रकट हुईं, सोने का भंडार लाया।

भक्तों को फिर अन्न दिया, प्रेम में सब भीगे,

खुद शिवजी हाथ फैलाकर, उनके द्वार पे झुके।

बोले — “हे माते शक्ति स्वरूपा, मैं अब जान गया,

तेरा रूप ही सत्य है, तुझमें ही ब्रह्म समाया।”

मां मुस्काईं प्रेम से, अन्न कटोरे में डाला,

शिव ने भोग लगाया फिर, सारा जग खुशहाल हुआ।

भावार्थ:

यह कविता बताती है कि अहंकार कितना भी बड़ा हो, माँ की ममता और सेवा भाव के आगे झुक ही जाता है। शिव और शक्ति का ये संवाद संसार को भक्ति, ज्ञान और कृतज्ञता का पाठ पढ़ाता है।

भगवान शिव के प्रमुख अवतार (11 मुख्य अवतार)

पुराणों और शैव ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने समय-समय पर कई रूपों में अवतार लिए। उनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं उनके 11 रुद्र अवतार और कुछ विशिष्ट अवतार जो खास उद्देश्य से लिए गए। आइए जानते हैं इनके बारे में:

1. वीरभद्र अवतार

जब राजा दक्ष ने शिव का अपमान किया और माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए, तब शिव ने क्रोध में वीरभद्र नामक भयानक रूप धारण किया और दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया। यह अवतार उनके रौद्र रूप का प्रतीक है।

2. भैरव अवतार

भैरव शिव का अत्यंत उग्र रूप है। जब ब्रह्मा ने अहंकार में शिव का अपमान किया, तब उन्होंने भैरव रूप लेकर ब्रह्मा का एक सिर काट दिया। इस रूप में शिव न्याय के देवता और रक्षाकर्ता भी हैं।

3. हनुमान (आंशिक अवतार)

कुछ ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी शिव के 11वें रुद्र अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म वानर रूप में हुआ और वे राम भक्त के रूप में प्रसिद्ध हुए।

4. अश्वत्थामा

महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को भी शिव का अंश माना जाता है। उन्हें चिरंजीवी (अमर) कहा गया है।

5. शंकराचार्य (आध्यात्मिक अवतार)

आदि शंकराचार्य को भी शिव का अवतार माना जाता है। वे ज्ञान और वेदांत के प्रचारक थे, जिन्होंने पूरे भारत में सनातन धर्म को पुनः स्थापित किया।

6. नंदीश्वर अवतार

भगवान शिव ने नंदी (जो उनका वाहन भी हैं) के रूप में अवतार लेकर भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया।

7. पिप्पलाद अवतार

शिव ने पिप्पलाद ऋषि के रूप में अवतार लिया, जिन्होंने अपने ज्ञान से कई ऋषियों को शिक्षित किया और धर्म की रक्षा की।

8. श्वेत मुनी

इस अवतार में शिव ने तपस्या, ध्यान और ब्रह्मचर्य का आदर्श प्रस्तुत किया।

9. गृहपति अवतार

इस अवतार में शिव ने यह बताया कि गृहस्थ धर्म और कर्तव्य का पालन भी ईश्वर की उपासना का मार्ग है।

10. सुंदरेश्वर अवतार

यह अवतार पार्वती के साथ विवाह और सौंदर्य का प्रतीक है, जिसमें शिव अत्यंत शांत और सुंदर रूप में प्रकट होते हैं।

11. अवतारों में अन्य रूप

कुछ अन्य ग्रंथों में शिव के अर्द्धनारीश्वर (आधा पुरुष, आधा स्त्री) रूप, महाकाल, काल भैरव, और नीलकंठ रूप को भी उनके विशेष अवतार माना गया है।

निष्कर्ष:

भगवान शिव के अवतार केवल राक्षसों का संहार करने के लिए नहीं होते, बल्कि वे धर्म की स्थापना, भक्तों की रक्षा, ज्ञान का प्रचार और कर्म की सीख देने के लिए होते हैं। उनके हर अवतार में कोई न कोई गहरा संदेश छिपा है – जैसे संयम, भक्ति, साहस, क्षमा, और सत्य।

 

 

 

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