महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया (9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597) मेवाड़ के एक महान शासक थे, जिनका नाम भारतीय इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग और स्वाभिमान का पर्याय बन गया है। वे सिसोदिया राजवंश के राजा थे और उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया था, जिसके कारण उन्हें जीवन भर संघर्ष करना पड़ा।
उनका जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा उदयसिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही उनमें असाधारण साहस और नेतृत्व के गुण थे। 1572 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का सिंहासन संभाला। उस समय मुगल साम्राज्य पूरे भारत में फैल रहा था और अकबर का उद्देश्य सभी राजपूत राजाओं को अपने अधीन लाना था।
महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए मुगलों से लगातार संघर्ष किया। हल्दीघाटी का युद्ध (1576) उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जहाँ उन्होंने अपनी छोटी सेना के साथ मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना का सामना किया। इस युद्ध में भले ही उन्हें पीछे हटना पड़ा, लेकिन उनकी वीरता और अदम्य साहस ने मुगलों को भी प्रभावित किया। उन्होंने कभी भी अकबर के सामने घुटने नहीं टेके और अपना शेष जीवन मेवाड़ को मुगलों से मुक्त कराने के लिए समर्पित कर दिया।
महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध नीति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया और अंततः मेवाड़ के अधिकांश क्षेत्रों को मुगलों से पुनः प्राप्त कर लिया। उनका घोड़ा चेतक भी अपनी वफादारी और वीरता के लिए इतिहास में अमर है। महाराणा प्रताप न केवल एक कुशल योद्धा थे, बल्कि वे एक दूरदर्शी शासक भी थे जिन्होंने अपनी प्रजा के कल्याण का भी ध्यान रखा।
आज भी महाराणा प्रताप को भारत में स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अपने सिद्धांतों और अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए।
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