प्राथमिक घाटा एक आर्थिक शब्द है जो किसी सरकार के कुल राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से उसके ब्याज भुगतान (Interest Payments) को घटाकर प्राप्त किया जाता है। यह दर्शाता है कि सरकार अपने सामान्य खर्चों और आय के बीच कितना अंतर कर रही है, ब्याज भुगतान को छोड़कर।
सूत्र:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
राजकोषीय घाटा वह स्थिति होती है जब सरकार की कुल आय (टैक्स + गैर-टैक्स) उसकी कुल खर्चों से कम होती है। लेकिन यह घाटा सरकार द्वारा पूर्व में लिए गए ऋणों पर दिए गए ब्याज को भी शामिल करता है। इसलिए, अगर हम उस ब्याज को हटा दें, तो हमें शुद्ध घाटा यानी प्राथमिक घाटा मिलता है।
उदाहरण:
मान लीजिए सरकार का राजकोषीय घाटा ₹6 लाख करोड़ है, और उसे ₹1.5 लाख करोड़ पूर्व के कर्जों पर ब्याज के रूप में चुकाने हैं। तो प्राथमिक घाटा होगा:
₹6 लाख करोड़ – ₹1.5 लाख करोड़ = ₹4.5 लाख करोड़
इसका मतलब यह है कि सरकार ने ₹4.5 लाख करोड़ का वास्तविक अतिरिक्त खर्च किया, जो उसकी आमदनी से अधिक था, बिना ब्याज के बोझ के।
प्राथमिक घाटे का महत्व:
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यह सरकार की वर्तमान वित्तीय स्थिति को बेहतर ढंग से दर्शाता है।
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अगर प्राथमिक घाटा शून्य है या ऋणात्मक, तो इसका मतलब है कि सरकार सिर्फ ब्याज चुका रही है, कोई नया कर्ज नहीं ले रही।
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यदि यह ज्यादा है, तो यह दर्शाता है कि सरकार को अपनी नीतियों और खर्चों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
निष्कर्षतः, प्राथमिक घाटा यह बताता है कि सरकार बिना ब्याज को ध्यान में रखे कितना उधारी पर निर्भर है। यह नीति निर्धारण और बजट समीक्षा में एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है।
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