रावण के पिता का नाम “विश्रवा” (Vishrava) था, जो एक अत्यंत विद्वान और तपस्वी ऋषि थे। उनका संबंध महान ऋषि पुलस्त्य से था, जो ब्रह्मा जी के मानसपुत्रों में से एक थे। विश्रवा ऋषि स्वयं भी बहुत ज्ञानी, धर्मशील और तपस्वी थे, और उन्हें वेदों का गहरा ज्ञान था।
विश्रवा ऋषि की दो पत्नियाँ थीं – पहली पत्नी इलाविदा (या इदाविदा) थीं, जिनसे उन्हें कुबेर नामक पुत्र प्राप्त हुआ, जो आगे चलकर देवताओं के खजांची और अलकापुरी के राजा बने। दूसरी पत्नी का नाम कैकेसी था, जो राक्षस वंश की थीं। कैकेसी से विश्रवा को चार संतानें हुईं – रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा।
रावण, कुंभकर्ण और शूर्पणखा में राक्षसी प्रवृत्तियाँ थीं, जबकि विभीषण धर्मात्मा और श्रीराम के भक्त माने जाते हैं। यह विरोधाभास इस बात को दर्शाता है कि विश्रवा ऋषि जैसे धर्मपरायण व्यक्ति की संतानें भी उनके संगठित विचारों से भिन्न हो सकती हैं।
विश्रवा ऋषि ने रावण को शास्त्रों, वेदों, राजनीति और तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी थी। रावण बाल्यकाल से ही अत्यंत प्रतिभाशाली और तेजस्वी था। लेकिन जब रावण ने घोर तप करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया और फिर देवताओं तक को चुनौती देने लगा, तो विश्रवा ने उसे कई बार संयम में रहने की सलाह दी थी।
निष्कर्षतः, रावण के पिता विश्रवा एक महान ऋषि थे, जिनकी संतानें देवताओं और राक्षसों के दोनों पक्षों में प्रसिद्ध हुईं। रावण की विद्वता और शक्तिशाली व्यक्तित्व का श्रेय काफी हद तक उसके पिता द्वारा दी गई शिक्षा को भी जाता है।
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