सम्प्रदायवाद का अर्थ है – अपने धर्म, जाति या समुदाय को सर्वोपरि मानकर दूसरे धर्मों, जातियों या समुदायों के प्रति असहिष्णुता या द्वेषपूर्ण व्यवहार करना। यह एक सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक प्रवृत्ति है, जिसमें व्यक्ति या समूह केवल अपने सम्प्रदाय के हित को देखता है, और अन्य सम्प्रदायों के अधिकारों, भावनाओं और अस्तित्व को नकारता है।
सम्प्रदायवाद का जन्म तब होता है जब धार्मिक पहचान को राजनीतिक और सामाजिक शक्तियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जब कोई व्यक्ति या संगठन अपने धर्म के नाम पर नफरत फैलाता है, या दूसरे धर्मों के खिलाफ हिंसा, भेदभाव और झूठी बातें फैलाता है, तो वह सम्प्रदायवाद की श्रेणी में आता है। यह प्रवृत्ति समाज में तनाव, अविश्वास, दंगे और विघटन उत्पन्न करती है।
भारत जैसे बहुधर्मी और विविध सांस्कृतिक देश में सम्प्रदायवाद एक गंभीर समस्या बन सकता है। देश की एकता, शांति और प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सभी धर्मों का सम्मान किया जाए और हर नागरिक को समान अधिकार मिले। भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है, यानी राज्य किसी एक धर्म को नहीं अपनाता और सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है।
सम्प्रदायवाद से लड़ने के लिए जरूरी है कि हम शिक्षा, संवाद और सहिष्णुता को बढ़ावा दें। सामाजिक जागरूकता, धार्मिक सहिष्णुता और एकजुटता के माध्यम से ही हम सम्प्रदायवाद जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को समाप्त कर सकते हैं।
निष्कर्षतः, सम्प्रदायवाद एक सामाजिक विष है जो समाज को बांटने का कार्य करता है। इससे बचना और सभी धर्मों का आदर करना एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है।
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