शारदा अधिनियम (Sharda Act) भारत में बाल विवाह को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया एक ऐतिहासिक कानून है। इसे सबसे पहले वर्ष 1929 में ब्रिटिश भारत की सरकार द्वारा पारित किया गया था। इसका मूल नाम “बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 1929” था, लेकिन इसे इसके प्रस्तावक हरबिलास शारदा के नाम पर “शारदा अधिनियम” कहा गया।
इस अधिनियम के तहत बाल विवाह की आयु-सीमा तय की गई थी। प्रारंभ में इस कानून के अनुसार लड़कों के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कियों के लिए 14 वर्ष निर्धारित की गई थी। लेकिन समय के साथ इसमें कई संशोधन किए गए और अब वर्तमान में:
लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष
लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
उद्देश्य:
शारदा अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित भविष्य देने के लिए बाल विवाह को रोकना था। बाल विवाह से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है, और यह सामाजिक अन्याय तथा महिला शोषण का कारण बनता है।
महत्व:
यह अधिनियम भारतीय समाज के सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की। इसके माध्यम से सरकार ने यह संदेश दिया कि विवाह से पहले बच्चों को परिपक्वता और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष:
शारदा अधिनियम न केवल एक कानून है, बल्कि एक सामाजिक सुधार आंदोलन का प्रतीक भी है। यह बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है, जिसे आज भी समाज में पूरी सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
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