सब-कास्ट का मतलब है जाति के भीतर की छोटी या उप-श्रेणियां। भारत में जाति प्रणाली बहुत जटिल और विस्तृत है, जिसमें मुख्य जातियों के अलावा उनकी कई उपजातियां या उप-समूह होते हैं, जिन्हें सब-कास्ट या उपजाति कहते हैं। ये उपजातियां सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या पेशेवर आधार पर अलग-अलग होती हैं।
– सब-कास्ट का उद्देश्य जाति के बड़े समूह को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटना होता है, ताकि सामाजिक व्यवस्था और परंपराएं ठीक से बनी रहें।
- – उदाहरण के लिए, एक मुख्य जाति ब्राह्मण हो सकती है, जिसके भीतर कई उपजातियां होती हैं जैसे कायस्थ, वैश्यमित्र, आदि। ये उपजातियां अपने रीति-रिवाज, व्यवहार और सामाजिक नियमों के हिसाब से अलग हो सकती हैं।
– सब-कास्ट सामाजिक पहचान का हिस्सा होती हैं और अक्सर विवाह, सामाजिक संबंध और धार्मिक गतिविधियों में इसका बड़ा असर होता है।
– भारत में सब-कास्ट का महत्व कभी-कभी बहुत अधिक होता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां लोग अपने सब-कास्ट के आधार पर सामाजिक नियम मानते हैं।
– हालांकि आधुनिक समय में शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के कारण सब-कास्ट के भेद धीरे-धीरे कम हो रहे हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में ये अभी भी प्रभावी हैं।
– सब-कास्ट कभी-कभी रोजगार, सरकारी योजनाओं और आरक्षण की प्राथमिकताओं में भी भूमिका निभाती हैं।
– यह प्रणाली सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करती है, लेकिन कई बार इससे सामाजिक भेदभाव और असमानता भी जन्म लेती है।
निष्कर्ष:
सब-कास्ट जाति व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो सामाजिक संगठन को प्रभावित करता है। यह एक जटिल प्रणाली है जो भारत की सामाजिक संरचना को समझने में मदद करती है, लेकिन इसके कारण होने वाले भेदभाव को खत्म करना भी जरूरी है ताकि समाज में समानता और भाईचारा बढ़ सके ।
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