तंदूर का बेस तंदूर बनाने का वह आधार या नींव होता है जिस पर पूरा तंदूर खड़ा होता है और जो उसे मजबूत और स्थिर बनाता है। तंदूर एक पारंपरिक भारतीय मिट्टी का चूल्हा है, जिसका उपयोग रोटियाँ, कबाब, नान, और अन्य पकवान बनाने के लिए किया जाता है। तंदूर का बेस उसकी मजबूती और काम करने की क्षमता के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
तंदूर का बेस आमतौर पर पत्थर, ईंट, या कंक्रीट से बनाया जाता है ताकि वह ऊंचा और स्थिर रहे। बेस की ऊंचाई इस तरह से रखी जाती है कि तंदूर का मुंह आराम से पकवान पकाने वाले की ऊंचाई पर हो। बेस की मजबूती से तंदूर में आग को सही ढंग से जलाने और पकवान को समान रूप से पकाने में मदद मिलती है।
तंदूर के बेस के नीचे एक या दो लेयर होती हैं, जो तापमान को संतुलित रखने का काम करती हैं। इन लेयर्स में आमतौर पर पत्थर या ईंट का उपयोग किया जाता है क्योंकि ये गर्मी को अच्छे से सहन कर पाते हैं और आग को तंदूर के अंदर ठीक तरह से फैलाते हैं। बेस को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है कि वह धूप, बारिश या हवा से तंदूर को सुरक्षित रख सके।
तंदूर का बेस इस बात का भी ध्यान रखता है कि तंदूर को खोलने और साफ करने में आसानी हो। कुछ तंदूर बेस में नीचे की तरफ एक गड्ढा या जगह होती है जहाँ राख और कोयला जमा होता है जिसे निकालना आसान होता है।
निष्कर्ष:
तंदूर का बेस तंदूर की स्थिरता, मजबूती और उसकी कार्यक्षमता के लिए बहुत जरूरी होता है। सही और मजबूत बेस होने पर तंदूर लंबे समय तक चल सकता है और पकवान भी अच्छे से पकता है। इसलिए तंदूर का बेस मजबूत, स्थिर और सही डिजाइन किया गया होना चाहिए।
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