upyogitavad kya hai

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उपयोगितावाद (Utilitarianism) एक नैतिक दर्शन है जिसका मूल उद्देश्य यह है कि किसी कार्य की नैतिकता का मूल्यांकन उसके परिणामों के आधार पर किया जाए। इसका प्रमुख सिद्धांत है “सर्वोच्च सुख का सिद्धांत” – अर्थात ऐसा कार्य नैतिक रूप से सही होता है जो अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख प्रदान करे।

उत्पत्ति और विकास:

उपयोगितावाद की जड़ें प्राचीन ग्रीक दर्शन में पाई जाती हैं, लेकिन इसे एक व्यवस्थित रूप देने का श्रेय अंग्रेज़ दार्शनिक जेरेमी बेंथम (Jeremy Bentham) और जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill) को जाता है।

बेंथम का मानना था कि इंसान स्वाभाविक रूप से सुख की ओर आकर्षित होता है और दुःख से बचना चाहता है। इस सिद्धांत को उन्होंने “हेडोनिज़्म” कहा, जिसमें सुख और दुःख को ही नैतिकता का आधार माना गया।

बेंथम के अनुसार, कोई भी कार्य नैतिक रूप से तभी सही है जब वह अधिकतम सुख उत्पन्न करे।

जॉन स्टुअर्ट मिल ने इस विचार को और अधिक गहराई दी। उन्होंने सिर्फ “सुख” की मात्रा पर ही नहीं, बल्कि उसकी “गुणवत्ता” पर भी बल दिया। उनके अनुसार, मानसिक और बौद्धिक सुख शारीरिक सुखों से अधिक श्रेष्ठ हैं।

मुख्य सिद्धांत:

1. परिणामवाद (Consequentialism): नैतिकता का मूल्य परिणामों पर आधारित होता है, न कि इरादों या नियमों पर।

2. सुख का अधिकतमकरण: सबसे अच्छा कार्य वह होता है जो सबसे अधिक लोगों को सबसे अधिक सुख दे।

3. निष्पक्षता: हर व्यक्ति के सुख का महत्व समान होता है – कोई व्यक्ति अधिक या कम मूल्यवान नहीं होता।

उपयोग:

उपयोगितावाद का प्रयोग नैतिक निर्णयों, कानून-निर्माण, सार्वजनिक नीतियों और सामाजिक कार्यों में होता है। उदाहरण के लिए, कोई सरकार अगर एक ऐसा कानून बनाती है जिससे अधिकांश नागरिकों को लाभ होता है, तो उपयोगितावाद के अनुसार वह कानून नैतिक रूप से उचित है।

आलोचना:

हालाँकि उपयोगितावाद का सिद्धांत सरल और व्यावहारिक प्रतीत होता है, फिर भी इसकी कई आलोचनाएँ की गई हैं:

यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उपेक्षा कर सकता है।

सभी सुखों को मात्रात्मक रूप से नापना कठिन है।

कभी-कभी यह अन्य नैतिक मूल्यों जैसे न्याय, स्वतंत्रता, और सच्चाई की उपेक्षा करता है।

निष्कर्ष:

उपयोगितावाद एक महत्वपूर्ण नैतिक सिद्धांत है जो निर्णयों को परिणामों के आधार पर परखता है। यह व्यक्ति की भलाई और समाज के सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता देता है। यद्यपि इसके कुछ सीमाएँ हैं, फिर भी यह नीति निर्धारण और नैतिक विचार विमर्श में एक प्रभावशाली दृष्टिकोण प्रदान करता है।

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