तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा “समय” की महिमा और शक्ति को दर्शाता है। इसका मूल रूप है:
“समय बड़ो बलवान है, कोउ न मारे धार।
तुलसी नर का क्या बड़ाई, समय बड़ा बलशाली।”
इस दोहे का भावार्थ यह है कि इंसान चाहे कितना भी बलवान, बुद्धिमान या धनी क्यों न हो, लेकिन समय के सामने उसकी कोई शक्ति नहीं चलती। समय जब साथ देता है तो कमजोर भी विजेता बन जाता है, और जब समय साथ नहीं देता, तो सबसे ताकतवर व्यक्ति भी हार जाता है।
– समय को तुलसीदास जी ने सबसे बड़ा बलशाली बताया है।
– यह दोहा हमें यह सिखाता है कि घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
– कभी एक गरीब आदमी राजा बन सकता है और कभी एक राजा भी दरिद्र हो सकता है – ये सब समय का खेल है।
– इसलिए इंसान को चाहिए कि वह मेहनत करे, लेकिन कभी समय को हल्के में न ले।
तुलसीदास जी की रचनाएं हमेशा जीवन की गहराई को सरल भाषा में समझाने वाली होती हैं। इस दोहे में उन्होंने ‘नर’ यानी इंसान की ताकत को कमतर नहीं कहा, लेकिन यह समझाया है कि मनुष्य का सामर्थ्य भी समय पर निर्भर करता है।
– अच्छे समय में हर काम सरल लगते हैं।
– बुरे समय में सबसे आसान काम भी कठिन हो जाते हैं।
– इसलिए विनम्र रहो, समय का आदर करो।
“तुलसी नर का क्या बढ़ाई, समय बड़ा बलवान।” — यह पंक्ति बार-बार याद दिलाती है कि समय ही सबसे बड़ा गुरु, न्यायाधीश और शक्ति है।
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